सबसे बड़ी रिसर्च संस्था इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) और देश के सबसे विश्वसनीय अस्पताल एम्स (AIIMS) का नाम जिस वैक्सीन (Corona Vaccine) की रिसर्च के साथ जुड़ा हो, उस पर भरोसा न करने की वजह हो ही नहीं सकती. इसीलिए भारत बायोटेक, आईसीएमआर और एनआईवी (National Institute of Virology) की पूरी तरह स्वदेशी वैक्सीन के तीसरे ट्रायल में मैंने वॉलंटियर बनने का फैसला किया.
ये फैसला करने की तीन बड़ी वजहें थीं…
1. देश के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों पर पूरा भरोसा.
2. अफवाहों पर लगाम लगाने का सबसे सही तरीका यही था कि खुद पर वैक्सीन आजमाई जाए.
3. साल भर से कोरोना वायरस और वैक्सीन पर रिपोर्टिंग करते-करते कोवैक्सीन पर शक की कोई गुंजाइश बाकी नहीं थी.
कैसे लगी वैक्सीन?
कोवैक्सीन (Covaxin) लगवाने के लिए पहले मैंने एम्स में वॉलंटियर फॉर्म भरा, जिसमें मेरी सहमति थी कि मैं साइड इफेक्ट्स की जानकारी से वाकिफ हूं और वॉलंटियर के तौर पर वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार हूं. फॉर्म भरते वक्त डॉक्टर ने काउंसलिंग की. वजन चेक करके नोट किया गया, कद नापा गया, ब्लड प्रेशर नापा गया. शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी थी या नहीं, ये चेक करने के लिए ब्लड सैंपल लिया गया (ये रिसर्च करते वक्त अहम होता है). वैक्सीन लगाते वक्त मैं कोरोना पॉजिटिव हूं या नेगेटिव, इसके लिए आरटीपीसीआर टेस्ट का सैंपल लिया गया.
फिर लगाई गई सुईं
इसके बाद लगाया गया एक इंजेक्शन. ये इंजेक्शन कोवैक्सीन है या साधारण टीका, इसका पता रिसर्च के नतीजे आने के बाद ही चलेगा. इसके बाद मुझे एक 8 पेज का डॉक्यूमेंट दिया गया, जिसे पेशेंट डायरी कार्ड (Patient Diary Card) कहा जाता है. इस पर वैक्सीन की अगली डोज की तारीख दर्ज है और साथ ही साइड इफेक्ट्स मॉनिटर करने के लिए जगह बनाई गई है. उम्मीद है कोई विशेष साइड इफेक्ट नहीं होगा. पहले दिन इंजेक्शन वाली जगह पर कुछ देर के लिए सुई चुभने जैसे दर्द के अलावा कोई और दिक्कत नहीं आई. Zee News के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर अगले 28 दिनों तक और दूसरे इंजेक्शन को लगाते वक्त भी अपडेट करती रहूंगी.
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दो डोज की वैक्सीन है Covaxin
बताते चलें कि Covaxin भी बाकी सभी वैक्सीन की तरह दो डोज की वैक्सीन है. पहली बार 6MG की डोज दी जाती है. मुझे आज पहली डोज दी गई है. दूसरी डोज फरवरी के पहले सप्ताह में लगेगी. स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन पर विश्वास करने की एक और बड़ी वजह ये भी है कि इसके ट्रायल में शामिल वॉलंटियर की संख्या सबसे ज्यादा है. तीसरे चरण में 26,000 लोगों पर ट्रायल किया जा रहा है. ऐसा तभी किया जाता है जब पहले दो चरण में कोई विशेष दिक्कत ना आई हो.
चांद पर कदम रखने जैसी उपलब्धि
भारत की गिनती विकासशील देशों में होती है. जबकि वैक्सीन बनाने वाले बाकी सभी देश अमेरिका, ब्रिटेन और रुस विकसित देश हैं. एक वर्ष में भारत जैसे देश के लिए रिसर्च से शुरुआत करके वैक्सीन तैयार करने तक पहुंचना किसी सपने से कम नहीं है. जिस देश में लालफीताशाही (Bureaucracy) हर विभाग में हो, लोगों की फितरत में हो, बजट की मारामारी रहती हो, उस देश में सरकार से लेकर वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वॉलंटियर्स ने तेजी से सकारात्मक भूमिका निभाई है. ये भारत के लिए चांद पर कदम रखने जैसी उपलब्धि है. मुझे गर्व है कि इस उपलब्धि में एक कतरे जैसा हिस्सा मेरा भी है. भारत की इस उपलब्धि और भारत के नागरिक के तौर पर मेरे इस कदम पर मुझे याद आता है…
कृष्ण बिहारी (नूर) ने कहा है-
मैं एक कतरा हूं, मेरा अलग वजूद तो है,
हुआ करे, जो समंदर मेरी तलाश में है।
(लेखिका पूजा मक्कड़, ZEE NEWS में दिल्ली ब्यूरो की एडिटर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं)