



पोड़ी- दल्हा में श्रीमद् भागवत गीता ज्ञान यज्ञ का पांचवा दिन
वर्तमान समय की मांग है आत्म शुद्धिकरण-ब्रम्हाकुमारी शशिप्रभा

सृष्टि का अनादि नियम है परिवर्तन ब्रम्हाकुमारी शशिप्रभा
पोड़ी दल्हा-कबीर चौक में चल रहे श्रीमद् भगवत् गीता के पांचवे दिन तीसरे एवं चौथे अध्याय पर चिंतन को आगे बढाते ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहा कि आत्मोन्नति का आधार अनासक्त भाव से किया गया श्रेष्ठ कर्म है। श्रेष्ठ कर्म सिखाने परमधाम निवासी निराकार परमात्मा को साकार सृष्टि में आना पडता है।
तृतीय अध्याय के 10 वे श्लोक में प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा यज्ञ सहित प्रजा रचकर ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति और कालांतर मे वृद्धि पाने का वर्णन है। इसे स्पष्ट करते हुए दीदी ने कहा कि निराकार परमात्मा को प्रकृति अर्थात् शरीर का आधार लेना पडता है। ब्रह्मा मुख द्वारा परमात्म ज्ञान के आधार पर ब्रहमा मुख वंशावली ब्राह्मणो का जन्म होता है अर्थात एडाप्ट करते है।
परमात्मा के अवतरण का समय भी अति धर्मग्लानि अर्थात् कलयुग के अंत का समय ही है । इसके पश्चात् सतयुग आना है इसलिए सतयुग की आदि भी कह सकते है । तो वर्तमान कलयुग और सतयुग का संधि संगमयुग ही परमात्मा के अवतरण का समय है ।
चौथे अध्याय के शुरू के श्लोक मे अर्जुन का प्रश्न कि इस ज्ञान को आपने पहले किन किनको दिया? इस पर कई शंकाएँ उठना स्वाभाविक है। इस पर स्पष्ट करते हुए दीदी ने कहा कि अर्जुन कृष्ण के जन्म से वर्तमान को भलीभांति जानता था फिर यह प्रश्न उठने का कारण और उत्तर मे इस ज्ञान को सूर्य को देने फिर सूर्य से मनु, इक्ष्वाकु, ॠषि मुनियों को प्राप्त होते लोप होने का वर्णन को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह ज्ञान परमात्मा ने ब्रह्मा तन का आधार लेकर हर संगमयुग मे हम सभी अर्जुनो को दिया और वर्तमान मे दे रहे है। मन और इच्छाएं आत्मा मे निहित है अर्थात ये नाम प्रतीकात्मक है।
महाभारत युद्ध, कयामत, बाइबिल मे वर्णित विनाश वास्तव में कलयुग से सतयुग मे परिवर्तन की प्रक्रिया मात्र है। परमात्मा हम आत्माओं को विकारों से मुक्त कर सतयुग पावन सृष्टि मे जन्म लेने लायक बना रहे है।