PM Narendra Modi completes twenty years on constitutional post removes article 370 from jammu kashmir | संवैधानिक पद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 साल, जब उन्होंने असंभव को किया संभव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 7 अक्टूबर को संवैधानिक पद पर बैठे हुए 20 साल हो जाएंगे. पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर और उसके बाद प्रधानमंत्री के तौर पर. इस दौरान उनके कई फैसले दूरगामी परिणाम देने वाले रहे हैं. कई ऐसे मुद्दे रहे जिनका हल निकालना कुछ समय पहले तक असंभव सा लगता था. उन्हीं में से एक रहा है जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए का हटना. ये कितनी जटिल समस्या थी इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि बीजेपी के हर मैनिफेस्टो में ये एक विषय रहता था.

वाजपेयी की सरकार में जगी थी उम्मीद

लेकिन जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो उम्मीद जगी कि शायद इसका कोई हल निकले. पर उनकी सरकार के बहुत ही वरिष्ठ मंत्री का बयान ये समझने के लिए काफी होगा कि दूर-दूर तक कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था उस समय. वाजपेयी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री से जब पूछा गया कि आप लोग धारा 370 हटाने का प्रयास क्यों नहीं करते? तो उनका जवाब था कि धारा 370 हटाने के लिए बीजेपी के पास अकेले दम पर 370 सीटें होनी चाहिए. हो सकता है उनके कहने का अर्थ हो कि इसके लिए 2/3 बहुमत से संविधान संशोधन करना पड़ेगा और इस मुद्दे पर कोई भी दल उनका समर्थन नहीं करेगा!

एक झटके में हटा दी गई धारा 370

लेकिन मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को धारा 370 और 35 A को एक झटके में ही हटा दिया. काफी हंगामा भी हुआ संसद में लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृढ़ निश्चय और गृह मंत्री अमित शाह की वेल रिसर्च के साथ-साथ दिए गए तर्को ने विपक्ष को हक्का-बक्का कर दिया था. आज 70 साल का वो बदनुमा दाग देश से हमेशा-हमेशा के लिए मिट गया है और इसी के साथ पूरा हुआ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना और बीजेपी का अपने मेनिफेस्टो के जरिए देश को दिया गया वादा.

एक देश, एक विधान और एक निशान जम्मू-कश्मीर को लेकर आज एक हकीकत बन गया है. जिसे देखने के लिए आजादी के बाद दो से तीन पीढियां खप गईं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेता के तौर पर 1990 के दशक में लाल चौक पर तिरंगा फहराया था. बाद में पार्टी ने इसके लिए कई कार्यक्रम भी किए थे. बीजेपी युवा मोर्चा ने तिरंगा यात्रा भी निकाली थी. लेकिन पार्टी नेताओं की लाख कोशिशों के बावजूद नतीजा शून्य ही रहा.

गृह मंत्री ने गोपनीय तरीके से लिखी पटकथा

ये टीस शायद प्रधानमंत्री के मन को कचोटता रही. यही वजह है कि जब 2019 में नए गृह मंत्री अमित शाह ने इसे हटाने की पटकथा गोपनीय तरीके से लिखनी शुरू की तो पीएम मोदी ने बस इतना ही कहा कि कोई कोर कसर न रह जाए. यानी जो भी हो भविष्य में कोई गुंजाइश न बचे इसकी वापसी का. और हुआ भी वही. धारा 370 हट गई और देश को भरोसा है कि भविष्य में भी कोई पार्टी या नेता इसको फिर से संविधान का अंग बनाने की जुर्रत नहीं करेगा.

धारा 370 हटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘पहले देश के लिए अधिकतर जो स्कीम बनती थीं, जो कानून बनते थे, उस पर लिखा होता था Except J&K. लेकिन अब ये इतिहास की बात हो गई.’

ये सही भी है कि दशकों के फासले को कम करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने विकास की दौड़ में पीछे रह गए जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख से अनुच्‍छेद 370 के प्रावधानों को निरस्‍त कर 70 साल की टीस खत्‍म की. अब उसे मुख्‍यधारा से जोड़ देश के अन्‍य राज्‍यों के बराबर लाकर खड़ा किया जा रहा है.

नई सुबह

आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देकर तत्कालीन सरकार ने देश को वो जख्म दिया जिसका कोई इलाज नहीं दिख रहा था. एक तरह से कुछ मामलों को छोड़कर वह स्वयंभू राज्य बन गया था. लेकिन अब सबकुछ बदल गया है. केंद्र के 170 कानून जो पहले लागू नहीं थे, अब वे इस क्षेत्र में लागू कर दिए गए हैं. वर्तमान में सभी केंद्रीय कानून जम्‍मू-कश्‍मीर केंद्र शासित प्रदेश में लागू हैं.

जम्मू-कश्मीर के साथ भारत के अन्य राज्यों से अलग व्यवहार किया जाता था. इसकी बानगी अनुच्‍छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्‍मू-कश्‍मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था, लेकिन किसी अन्‍य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्‍य सरकार की मंजूरी लेनी होती थी.

भारत की संसद जम्‍मू-कश्‍मीर के संबंध में सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती थी. अनुच्‍छेद 370 की वजह से जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य पर भारतीय संविधान की अधिकतर धाराएं लागू नहीं होती थीं. भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्‍मू-कश्‍मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे. भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्‍तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है. लेकिन यह जम्‍मू-कश्‍मीर पर लागू नहीं होता था.

केंद्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम भी जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता था. इतना ही नहीं जम्‍मू-कश्‍मीर की विधान सभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था. जबकि भारत के अन्‍य राज्‍यों की विधान सभाओं का कार्यकाल 5 साल का होता है.

लेकिन अब सबकुछ बदल गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘जम्‍मू-कश्‍मीर की बहनों और भाइयों के साहस और जज्‍बे को सलाम करता हूं. वर्षों तक कुछ स्‍वार्थी तत्‍वों ने ‘इमोशनल ब्‍लैक-मेलिंग’ का काम किया. लोगों को गुमराह किया और विकास की अनदेखी की. जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख अब ऐसे लोगों के चंगुल से आजाद हैं. एक नई सुबह एक बेहतर कल के लिए तैयार है.’

धरती के स्वर्ग में नई सुबह आ गई है. शायद प्रधानमंत्री मोदी के मुख्यमंत्री और पीएम के तौर पर 20 साल पूरे होने पर इससे बेहतर सौगात क्या होगी कि उनकी सरकार के प्रयास से वहां न सिर्फ विकास की धारा बहने लगी है बल्कि आतंक और आतंकवादियों के पांव लगभग उखड़ गए हैं.

अनुच्‍छेद 370 हटने के बाद अलगाववादियों का जनाधार खत्‍म होता जा रहा है. वर्ष 2018 में 58, वर्ष 2019 में 70 और वर्ष 2020 में 6 हुर्रियत नेता हिरासत में लिए गए. 18 हुर्रियत नेताओं से सरकारी खर्चे पर मिलने वाली सुरक्षा वापस ली गई. अलगाववादियों के 82 बैंक खातों में लेनदेन पर रोक लगा दी गई है. आतंक की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है और घाटी में लगभग शांति है. डल झील पर पर्यटकों की चहल पहल इसका जीता जागता उदाहरण है.

धारा 370 हटाने का सपना बचपन से पाले हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘यह उन सभी देशभक्तों को सच्ची श्रद्धांजलि है जिन्होंने भारत की एकता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है.’

पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की इसी दीर्घकालिक सोच का ही नतीजा है कि आज कश्‍मीर भी देश के साथ विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है. चाइल्‍ड मैरिज एक्‍ट, शिक्षा का अधिकार और भूमि सुधार जैसे कानून अब यहां भी प्रभावी हो गए हैं. वाल्‍मीकि, दलित और गोरखा जो राज्‍य में दशकों से रह रहे हैं, उन्‍हें भी राज्‍य के अन्‍य निवासियों की तरह समान अधिकार मिल रहे हैं.

वर्ष 2020-21 के लिए 15वें वित्‍त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को क्रमश: 30,757 करोड़ रुपये और 5,959 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है.

जम्मू-कश्मीर विकास की राह पर बढ़ रहा है क्योंकि खुद प्रधानमंत्री मोदी इस पर नजर बनाए रखते हैं. एक बड़े मंत्री ने कहा भी था कि जैसे 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने भुज भूकंप पीड़ितों को एक नया जीवन देने का संकल्प लिया और मिशन मोड में उसे पूरा भी किया. ठीक उसी तरह 2019 में धारा 370 हटने के बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने का संकल्प ले लिया है. तभी तो 70 मंत्रियों को उन्होंने इस नए केंद्र शासित प्रदेश में भेज दिया. उसके पहले भी केंद्र के मंत्रियों का लगातार दौरा होता रहा है.

अब राज्य में किसी तरह की कमी को नहीं होने दिया जा रहा है. फ्लैगशिप स्‍कीम प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जम्‍मू-कश्‍मीर में 5,300 किलोमीटर सड़क बनाई जा रही है. ग्‍लोबल इन्‍वेस्‍टमेंट समिट के जरिए 13,732 करोड़ रुपये के एमओयू पर दस्‍तखत हुए हैं.

7 नवंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और जम्‍मू-कश्‍मीर के विकास के लिए लगभग 80,000 करोड़ रुपये की पुनर्निर्माण योजना की घोषणा की थी. पुनर्गठन के बाद जम्‍मू-कश्‍मीर में 58,477 करोड़ रुपये की 53 परियोजनाओं जबकि लद्दाख में 21,441 करोड़ रुपये की 9 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. अंतरराष्‍ट्रीय सीमा के पास रहने वालों के लिए सेवाओं और शैक्षणिक संस्‍थानों में 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

यही नहीं बदले हालात में मूल निवासी कानून लागू किया गया. नए मूल निवासी कानून के अनुसार, 15 वर्ष या अधिक समय तक जम्‍मू-कश्‍मीर में रहने वाले व्‍यक्ति भी मूल निवासी माने जाएंगे. 1990 में कश्‍मीर घाटी से भगाए गए कश्‍मीरी पंडितों को फिर से बसाने का रास्‍ता साफ हो गया है. कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए 6,000 नौकरियों और 6,000 आवासों के निर्माण का काम जोरों पर है. जम्‍मू-कश्‍मीर से बाहर विवाह करने वाली लड़कियों और उनके बच्‍चों के अधिकारों का संरक्षण भी सुनिश्चित हुआ है. इसके पहले राज्य से बाहर शादी करने वाली महिलाओं का हर अधिकार छीन लिया जाता था.

आतंकवाद के लिए बदनाम पुलवामा को एक नई पहचान मिल रही है. वहां के उक्‍खूगांव को पेंसिल वाले गांव का टैग देने की तैयारी है. देश का 90 प्रतिशत पेंसिल स्‍लेट यहीं से तैयार होकर देशभर में जाता है. शिक्षा के विकास के लिए नए स्‍वीकृत 50 कॉलेजों में से 48 कॉलेजों को चालू कर दिया गया है. जिसमें 6,700 छात्रों ने प्रवेश लिया है. 7 नए मेडिकल कॉलेज और 5 नए नर्सिंग कॉलेजों को मंजूरी दी गई है. गुलमर्ग में पहली बार खेले गए भारतीय शीतकालीन खेलों का आयोजन हुआ.

ये बदलते जम्मू-कश्मीर की एक झलक है. जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना रहा है. पीएम मोदी 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही उत्तर पूर्व, देश के पिछड़े जिले, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के चहुंमुखी विकास की कोशिशों में लग गए थे.

निष्पक्ष चुनाव

इसी का परिणाम है कि धारा 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में लोकतंत्र की एक नई सुबह आई है. धारा 370 हटने के एक साल बाद यहां गांवों के साथ जिला पंचायत के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए. कई वर्षों के बाद 2018 में पंचायत चुनाव हुए और इसमें 74.1 फीसदी मतदान हुआ.

2019 में पहली बार आयोजित ब्‍लॉक डेवलपमेंट काउंसिल चुनाव में 98.3 फीसदी मतदान हुआ. हाल ही में जिला स्‍तर के चुनाव में भी रिकॉर्ड भागीदारी हुई. यही नहीं वाल्‍मीकि समुदाय, गोरखा लोगों और पश्चिमी पाकिस्‍तान से उजाड़े और खदेड़े गए शरणार्थियों को पहली बार राज्य में होने वाले चुनाव में वोट करने का अधिकार मिला.

जनता खुश, नेता परेशान

इससे जम्मू-कश्मीर की जनता तो खुश है लेकिन वहां पर सालों से राज करने वाले घरानों की नींद उड़ गई है. गुपकार गठबंधन बना. विरोध की हर कोशिश हुई. किसी ने धारा 370 हटाने के लिए चीन की मदद लेने की वकालत की तो किसी ने पाकिस्तान की. किसी ने चुनावों का बहिष्कार किया तो किसी ने इस फैसले को देश तोड़ने वाला करार दिया. बावजूद इसके पीएम मोदी ने मुख्य नेताओं से खुद बातचीत की. उम्मीद है कि केंद्र शासित प्रदेश में जल्द विधान सभा के चुनाव होंगे.

370 धारा हटाते वक्त गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था, ‘ऐतिहासिक भूल को ठीक करने वाला ऐतिहासिक कदम है.’ नरेंद्र मोदी सरकार की इसी दीर्घकालिक सोच को कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संवैधानिक पद पर बैठे हुए 20 साल की लंबी यात्रा में यह एक ऐसा फैसला रहा जो सदियों तक याद किया जाएगा.

(लेखक रविंद्र कुमार ज़ी न्यूज़ में एसोसिएट एडिटर हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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